झारखंड में भविष्य में होने वाली परिसीमन प्रक्रिया के चलते आदिवासी समुदाय के लिए आरक्षित विधानसभा और लोकसभा सीटों की संख्या में कमी की संभावना पर गहराई से बातचीत हो रही है। वर्तमान में, राज्य विधानसभा में अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए 28 सीटें आरक्षित हैं, लेकिन परिसीमन के पश्चात यह संख्या घटकर 18 के आसपास हो सकती है।
परिसीमन की पृष्ठभूमि
परिसीमन का उद्देश्य जनसंख्या के आधार पर निर्वाचन क्षेत्रों का दोबारा निर्धारण करना है, ताकि हर क्षेत्र में समान प्रतिनिधित्व सुनिश्चित किया जा सके। हालांकि, झारखंड जैसे राज्यों में, जहां आदिवासी समुदाय की जनसंख्या समय के साथ कम हुई है, परिसीमन के परिणामस्वरूप उनकी राजनीतिक प्रतिनिधित्व में भी कमी हो सकती है। 1951 में राज्य में आदिवासी आबादी 39% थी, लेकिन वर्तमान में यह प्रतिशत काफी कम हो गया है।
विधानसभा में चर्चा
झारखंड विधानसभा के बजट सत्र के दौरान परिसीमन के मुद्दे पर व्यापक चर्चा हुई। एसटी, एससी और ओबीसी कल्याण मंत्री चमार लिंडा ने चिंता व्यक्त की कि अगर जनसंख्या के आधार पर परिसीमन किया गया तो आदिवासी समुदाय के लिए सीटों की संख्या में कमी आ सकती है। उन्होंने सुझाव दिया कि परिसीमन के दौरान जनसंख्या के बजाय अन्य मानदंडों पर विचार किया जाना चाहिए, ताकि आदिवासी समुदाय के अधिकारों की रक्षा हो सके।
विपक्ष की प्रतिक्रिया
विपक्ष के नेता बाबूलाल मरांडी ने आदिवासी आबादी में कमी के बारे में चिंता व्यक्त की और राज्य में अवैध प्रवासियों को पहचानने के लिए राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) को लागू करने का आग्रह किया। उन्होंने उल्लेख किया कि आदिवासी प्रतिनिधित्व की सुरक्षा के लिए एनआरसी महत्वपूर्ण है, जिससे राज्य के मूल निवासियों और गैर-मूल निवासियों के बीच अंतर किया जा सके।
आदिवासी संगठनों की मांग
आदिवासी संगठनों ने परिसीमन के संभावित प्रभाव के बारे में चिंता जताई है। उन्होंने विधानसभा और लोकसभा में आदिवासी समुदाय के लिए आरक्षित सीटों की संख्या को मौजूदा स्तर पर बनाए रखने की मांग की है। इन संगठनों का कहना है कि बाहरी जनसंख्या के बढ़ते प्रभाव से आदivासी समुदाय की राजनीतिक प्रतिनिधित्व में कमी आ सकती है, जो कि उनके अधिकारों के लिए हानिकारक साबित होगा।
इतिहास से सबक
यह ध्यान देने योग्य है कि 2008 में परिसीमन के समय आदिवासी सीटों में कमी का सुझाव दिया गया था, लेकिन उस समय के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के दखल से इसे रोका गया। उस समय, परिसीमन आयोग ने छह विधानसभा और एक संसदीय एसटी सीटों में कमी करने की योजना बनाई थी, लेकिन सिंह के निर्णय के कारण 28 विधानसभा और 5 संसदीय एसटी सीटें संरक्षित रहीं।
आगे की राह
आदिवासी समुदाय के नेता और संगठन अगले परिसीमन प्रक्रिया में अपनी सीटों की सुरक्षा के लिए सक्रिय हो गए हैं। वे प्रधानमंत्री, गृह मंत्री, राहुल गांधी और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से मिलकर झारखंड में आदिवासियों की 28 विधानसभा सीटों और लोकसभा की पांच सीटों की सुरक्षा की मांग करेंगे। उनका दावा है कि यदि सीटों की संख्या में कमी आती है, तो यह आदिवासी समुदाय के राजनीतिक और सामाजिक अधिकारों पर नकारात्मक असर डालेगा।
निष्कर्ष
झारखंड में परिसीमन प्रक्रिया ने आदिवासी समुदाय के राजनीतिक प्रतिनिधित्व पर इसके संभावित प्रभाव के बारे में काफी चिंताएँ पैदा की हैं। इस मामले पर विधानसभा में व्यापक बहस हुई है, जहाँ विभिन्न राजनीतिक दलों और संगठनों ने अपनी विशिष्ट चिंताओं और सुझावों को व्यक्त किया है। यह आवश्यक है कि परिसीमन प्रक्रिया में सभी समूहों के अधिकारों और प्रतिनिधित्व पर विचार करते हुए निष्पक्ष समाधान प्राप्त किए जाएँ, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि झारखंड का सामाजिक ढांचा और विविधता संरक्षित रहे।

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